पटना|गर्भाशय के ट्यूमर से पीड़ित महिला की जान लेप्रोस्कोपी हिस्टेक्टोमी तकनीक से शिवम हॉस्पिटल के चिकित्सकों ने बचा ली। डॉ. सारिका राय और सर्जन डॉ. अजय की टीम ने गर्भाशय में स्थित पांच महीने के बच्चे के बराबर के ट्यूमर को निकाला। मरीज अब पूरी तरह से स्वस्थ है और उसे होने वाली परेशानी से निजात मिल गई है।डॉ. सारिका राय ने बताया कि पाटलिपुत्र कोलाॅनी की 52 वर्षीय रूना सिंह के गर्भाशय में ही ट्यूमर हो गया था। इसके पहले भी पीड़िता का तीन-चार बार अाॅपरेशन हो चुका है। इसलिए महिला का इस बार पेट खोलना ठीक नहीं था। इसलिए निर्णय लिया गया कि लेप्रोस्कोपी हिस्टेक्टोमी से ही ट्यूमर को निकाला जाए और अंतत: यह प्रयोग सफल रहा। यह अत्यंत अाधुनिक तकनीक है। इसमें काफी छोटा चीरा लगाकर ट्यूमर निकाल लिया जाता है। मरीज को कष्ट कम होता है और दो-चार दिनाें में दैनिक कार्य निपटाने में सक्षम हो जाता है।
राजधानी की फेमस डॉक्टर सारिका राय ने साबित कर दिया है कि वो मक्खन-मलाई वाले और सिर्फ आसान सा दिखने वाले केस को अपने हाथों में नहीं लेती हैं. वो बिगड़े हालातों में क्रिटिक्ल केस को भी अपने हाथों में लेती हैं और उसे अच्छे से हैंडल करना भी जानती हैं. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि डॉ. सारिका राय ने एक महिला की जान बचाई है. वो भी तब जब पेशेंट के बचने के चांस बेहद कम थे. प्रेगनेंसी के दौरान जोंडिस की वजह से पेट में ही बच्चे की मौत हो चुकी थी.
इन हालातों में अच्छे-अच्छे डॉक्टर्स इस तरह का केस लेने कतराते हैं. एक पल के लिए डॉ. सारिका राय का भी मन डोल गया था. अंजाम के बारे में सोंच कर वो भी इस केस में हाथ लगाने से डर रही थीं. लेकिन उन्हें पेशेंट के परिवार का साथ मिला और फिर भगवान का नाम लेकर एक क्रिटिक्ल केस में हाथ लगाया. अब अंजाम ये है कि महिला पेशेंट अब पूरी तरह से स्वस्थ है. बात कर रही है और डॉ. सारिका राय की तारीफ करते थक नहीं रही है. तारीफ करने वाली बात भी है. क्योंकि महिला को दूसरा जीवन जो मिला है.
— जानिए पूरा मामला
सत्यजीत कुमार सिन्हा हाजीपुर के भठंडी सराय इलाके रहने वाले हैं. इनकी वाइफ अनामिका सिन्हा 9 महीने की प्रेगनेंट थी. इन्हें जोंडिस हो चुका था. इस वजह से पेट में बच्चा मर चुका था. मेडिकल टेस्ट में बिलीरुबिन का लेवल 22 पहुंच चुका था. सत्यजीत सिन्हा अपनी वाइफ का इलाज पहले डॉ. रीता प्रसाद से करा रहे थे. लेकिन ये केस काफी बिगड़ चुका था. ऐसे में डॉ. रीता प्रसाद ने अनामिका को रेफर कर दिया.
2 अप्रैल को सत्यजीत डॉ. सारिका राय के पास पहुंचे. अनामिका के मेडिकल रिपोर्ट देखते ही डॉ. सारिका दो कदम पीछे हट गई थीं. इस केस में काफी रिस्क था. पेट में मरे हुए बच्चे की नॉर्मल डिलीवरा कराना कतई आसान नहीं था. अनामिका की मौत का खतरा सबसे अधिक था. ऐसे में डॉ. सारिका रिस्क लेेना नहीं चाह रही थीं. उन्हें ये मामला एक हारे हुए केस की तरह लग रहा था. हर कोई जानता है कि एडवोकेट और डॉक्टर हारे हुए केस को अपने हाथ में लेना नहीं चाहते हैं.
लेकिन अनामिका के पति और भाई ने डॉ. सारिका के उपर अपना विश्वास जताया. जिसके बाद ही डॉ. सारिका ने हिम्मत जुटाया. अब उसका रिजल्ट भी सबके सामने है. अनामिका की जान बचाकर डॉ. सारिका राय भी काफी खुश हैं. वो कहती है कि अगर मलाई मक्खन वाला हीे केस करना है तो हम डॉक्टर ही क्यों बने. नॉर्मल डिलीवरी तो खेतों में भी हो जाती है. भगवान का आर्शिवाद था कि सबकुछ अच्छे से हुआ. डिलीवरी बहुत ही पेचिदी चीज है. भगवान हमारे साथ रहेंगे तो और भी पेशेंट का इलाज हम अच्छे से कर पाएंगे.